जब एक बार किसी पुलिस स्टेशन पर कोई व्यक्ति अपनी कंप्लेंट को लेकर पहुंचता है तो फिर पुलिस स्टेशन में उसकी जो बात होती है उसे सुना जाता है उसके बाद सीआरपीसी की धारा 156 जिसमें की एक पुलिस अधिकारी को यह अधिकार दिए गए हैं कि वह उस मामले की छानबीन कर सकता है, बिना किसी मजिस्ट्रेट की इजाजत के जहां पर वह घटना घटित हुई हो वहां पर जाकर पुलिस अधिकारी उस मामले की छानबीन करता है और मामले से सम्बन्धित लोगों से पूछताछ भी करता है। छानबीन के दौरान जो भी व्यक्ति उस मामले से सम्बन्धित होते हैं यानी कि आई विटनेस या फिर और भी कोई व्यक्ति उनसे वह बयान भी रिकॉर्ड कर सकता है। जरूरत पड़ने पर उन्हें थाने भी बुलाया जाता है या फिर अगर मामला कोर्ट में चलता है तो वहां पर उन्हें बुलाया जाता है।
सारी इन्वेस्टिगेशन करने के बाद अगर पुलिस अधिकारी को ऐसा लगता है कि मामला बहुत ही गंभीर है तो उस मामले की F.I.R को सेक्शन 154 सीआरपीसी के तहत दर्ज कर दिया जाता है और अगर ऐसा लगता है कि मामला गंभीर प्रकृति का नहीं है तो पुलिस ऑफिसर उस मामले की F.I.R को सेक्शन 155 सीआरपीसी के तहत दर्ज करता है। एक बार जब F.I.R दर्ज हो जाती है तो उसके बाद उस F.I.R की कॉपी को पुलिस स्टेशन का जो क्षेत्र अधिकार वाला डिस्ट्रिक्ट कोर्ट है उसमें भेज दिया जाता है।
ऐसा करने के बाद chargesheet बनाने का प्रोसीजर स्टार्ट होता है। एक बार फिर से वह पुलिस अधिकारी कंप्लेनेंट को अपने साथ लेकर उस जगह पर जहां पर वह घटना घटित हुई थी वहां पर जाते हैं और कंप्लेनेंट से सारी जानकारी लेते हैं कि किस तरह घटना उस जगह पर घटित हुई थी। पुलिस ऑफिसर का इस तरह से कार्रवाई करने का मकसद एक नक्शा मौका को तैयार करना होता है जो कि किसी भी चार्जशीट के लिए एक अहम हिस्सा होता है। इस तरह से कंप्लेनेंट पूरी घटना को बताता है, वहां पर उस घटना के जो भी आईविटनेस होते हैं उससे भी बयान लिया जाता है और जितने भी लोगों के बयान होते हैं वह सीआरपीसी की धारा 161 के तहत रिकॉर्ड किए जाते हैं।
इसके बाद जैसे ही नक्शा मौका बनाने की पूरी कार्यवाही पूरी हो जाती है उसके बाद उस नक्शा मौका पर सभी के सिग्नेचर कराए जाते हैं और साथ में जो इन्वेस्टिगेशन ऑफीसर (I.O) होता है वह भी उस पर सिग्नेचर करता है, जिस पर लिखा होता है कि इन लोगों की उपस्थिति में यह नक्शा मौका तैयार किया गया है और इस इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर के द्वारा यह तैयार किया गया है। इसके बाद जो भी आरोपी व्यक्ति है जिसके खिलाफ कंप्लेंट लिखवाई गई है उसे पुलिस अरेस्ट कर लेती है। अगर अपराध गंभीर नहीं है तो उस व्यक्ति को थाने से ही जमानत मिल जाती है और जब पुलिस कोर्ट में चालान पेश करती है तब उस व्यक्ति को कोर्ट में पेश होना होता है। इसके अलावा अगर वह अपराध कोई संज्ञेय कैटेगरी का अपराध है अर्थात नॉन बेलेबल क्राइम है तो उस व्यक्ति को पुलिस बिना अरेस्ट वारंट के भी गिरफ्तार कर सकती है और थाने से उसकी जमानत भी नहीं हो सकती।
पुलिस ऑफिसर के लिए यह प्रोविजन किया गया है सीआरपीसी की धारा 170 के तहत कि जब भी इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर किसी व्यक्ति को अरेस्ट करते हैं तो 24 घंटे के अंदर उस अरेस्ट व्यक्ति को रिलेटेड कोर्ट के मजिस्ट्रेट के सामने उन्हें पेश करना होता है। उसके बाद अगर पुलिस की इन्वेस्टिगेशन अभी भी बाकी है और उस व्यक्ति से अभी उन्हें और पूछताछ करनी है जो कि उस केस के लिए बहुत जरूरी है तब ऐसी कंडीशन में पुलिस अधिकारी कोर्ट में एप्लीकेशन लगा सकता है और पुलिस कस्टडी की डिमांड कर सकता है। किसी भी मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी के सेक्शन 167 के तहत यह अधिकार दी गई है कि वह अपराधी को पुलिस कस्टडी में जरूरत समझे तो भेज सकता है जो की अधिक्तम 15 दिन तक की बढ़ाई जा सकती है लेकिन पुलिस अधिकारी को यह बताना होता है कि वह आरोपी को रिमांड में क्यों लेना चाहते हैं।
14 दिनों की पुलिस रिमांड के बाद उस आरोपी को जुडिशल कस्टडी में भेज दिया जाता है लेकिन अगर इन्वेस्टिगेशन के दौरान अगर पुलिस अधिकारी को ऐसा लगे कि आरोपी से दोबारा पूछताछ करने की जरूरत है तो वह उस आरोपी को दोबारा से रिमांड में ले सकते हैं। इसके लिए कोर्ट से इजाजत लेनी पड़ती है और जब तक चार्जशीट तैयार नहीं होती आरोपी को जुडिशल कस्टडी में रखने का प्रोविजन होता है जो कि 14, 14 दिनों के बाद बढ़ाया जाता है।
इसके अलावा अगर टाइम पर चार्जशीट को फाइल नहीं किया जाता कोर्ट में तो फिर आरोपी को सीआरपीसी के सेक्शन 162 क्लॉज 2 के तहत जमानत भी दिए जाने का प्रोविजन है। उसके बाद सीआरपीसी 173 के तहत चार्जशीट को फाइल करने का प्रोविजन किया गया है जो कि कोर्ट में पेश की जाती है।
अगर किसी आरोपी पर जो आरोप लगाया गया है उस अपराध में अगर 10 साल से कम की सजा का प्रोविजन है तो फिर आरोपी के गिरफ्तारी के 60 दिनों के अंदर चार्जशीट को कोर्ट में पेश करना जरूरी होता है, यह इसकी टाइम लिमिट होती है। वहीं अगर आरोपी पर जो आरोप लगाया गया है उसमें जो सजा का प्रोविजन है वह 10 साल से ज्यादा का है या उम्रकैद का है तो उस कंडीशन में जो चार्जशीट होती है वह गिरफ्तारी के 90 दिनों के अंदर कोर्ट में पेश करनी होती है।
किसी भी केस के लिए जो चार्जशीट होती है वह बहुत ही जरूरी होती है क्योंकि उसी के आधार पर पूरा केस की कार्यवाही चलती है और कोर्ट में प्रोसीडिंग चलती है और कोर्ट में आरोपियों के खिलाफ समन जारी किए जाते हैं।
Thnq sir